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क्या आप स्वस्थ है?

  • Writer: vinai srivastava
    vinai srivastava
  • Apr 24, 2023
  • 2 min read

प्रायः लोग जब भी मिलते हैं यह प्रश्न जरूर करते हैं कि ‘आप कैसे हैं स्वस्थ है ना।‘ पूछने वाला यदि अंतरंग नहीं हुआ तो अक्सर लोग कहते हैं ‘हाँ ठीक है।‘ और ये कहकर अपना पीछा छुड़ा लेते है। परन्तु यदि किसी ने आपके चलने के ढंग, बोलने के ढंग, देखने की क्रिया य भाव भंगिमा में कोई असामान्यता देखी तो आप मुख्यतः अपने तौर तरीके को समझाने की चेष्टा करते दिखेंगे।

आप स्वस्थ हैं एक साधारण सा वाक्य है। परंतु इसका अर्थ बहुत गूढ़ है और संपूर्ण भारतीय दर्शन (फिलॉसफी) इसमें परिलक्षित होता है। आप स्वस्थ हैं का अर्थ साधारणता लोग इस बात से लगा लेते हैं आप निरोगी हैं। स्वस्थ रहना और निरोगी रहना दोनों एक से नहीं है। आज के इस आधुनिक रहन सहन में यदि कोई कहे की वह पूर्णता निरोगी है तो गलत होगा, क्योंकि प्रत्येक प्राणी किसी न किसी रोग चाहे शारीरिक हो या मानसिक त्रस्त होता ही है। मन का रोग केवल पागलपन ही नहीं है वरन् प्रत्येक शारीरिक रोग (आकस्मिक चोट इत्यादि के अलावा) का कारण मन की किसी न किसी अशांति से ही होता है। आज का विज्ञान भी कहता है 97% शारीरिक बीमारियों का कारण मन है दूसरे शब्दों में अधिकतर रोग साइकोसोमैटिक ही होते हैं। अतः मन अशांत हुआ नहीं कि आप किसी न किसी रोग को आमंत्रित कर रहे होते हैं। आज सभी लोगों की दिनचर्या ऐसी हो चली है कि मन किसी न किसी बाह्य कारणों से व्यथित होता रहता है। आप जो चाह रहे हैं, जिसकी कामना किये बैठे हैं, पूरी नहीं हो रही है। घर के बच्चे पढ़ नहीं रहे है; पति य पत्नी अपने मन के अनुरूप नहीं है; हम चाहते हैं परन्तु कोई समाज, कोई मत, कोई दोस्त, कोई टीम, कोई व्यक्ति मेरे मन के अनुरूप नहीं है या बच्चे बड़े होकर बाहर निकल गए और पूछते नहीं इत्यादि इत्यादि ना मालूम कितने नाकाम हसरतों, इच्छा की गांठें मन में रखकर जी रहे है। ये सब गांठें किसी न किसी रूप में शरीर के किसी न किसी छोटे या बड़े रोग के रूप में प्रकट होते रहते है।

हाँ यदि मन शांत है, बाह्य जगत की विकृतियां जो पारिवारिक, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक परिस्थितियों के कारण है, मन को विचलित नहीं करती है तो मन की गांठ नहीं पड़ेगी। मन बहुत कुछ बाह्य जगत की विकृतियों से असंगत (अन्अटैच्ड) हो चलेगा। इसे ही मन की स्थिरता कहेंगे या मन स्वयं में स्थिर हो चला है। इस अवस्था को स्व में स्थित होना या स्वस्थ होना कहते हैं।

इसलिए यदि आप स्वस्थ हैं तो मन शांत और स्थिर होगा अर्थात् स्वमेव् शरीर निरोगी होगा। यही कारण है कि हम ये नहीं कहते की क्या आप निरोगी है। हम रोग के मूल में जाकर संस्कृत या हिंदी में यही कहते हैं कि क्या आप स्वस्थ हैं। अब आप स्वयं से प्रश्न कर सकते हैं कि ‘क्या मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ।‘

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